एमजीएसयू के इतिहास विभाग के बैनर तले जूनागढ़ किले का शैक्षणिक भ्रमण आयोजित







कुलपति प्रोफेसर विनोद कुमार सिंह ने विद्यार्थी दल को रवाना किया


मध्यकालीन इतिहास की बेजोड़ विरासत को सदियों से सहेजा जूनागढ़ ने : डॉ॰ मेघना शर्मा

BIKANER एमजीएसयू के इतिहास विभाग द्वारा अकादमिक टूर की निदेशक डॉ॰मेघना शर्मा के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस कार्यक्रमों की शृंखला में विद्यार्थियों को सोमवार को बीकानेर के जूनागढ़ किले की विज़िट करवाई गई । अकादमिक दौरे के तहत विश्वविद्यालय के 60 से अधिक विद्यार्थियों ने मध्यकालीन दुर्ग स्थापत्य वास्तु कला और सोने की कलम से की जाने वाली अद्भुत चित्रकारी के नमूनों का बीकानेर स्थित जूनागढ़ महल में संकाय सदस्यों के सानिध्य में अवलोकन अध्ययन किया। कुलपति प्रोफेसर विनोद कुमार सिंह ने हरी झंडी दिखाकर विद्यार्थी दल को इस अकादमिक यात्रा रवाना किया।

इस अवसर पर कुलसचिव यशपाल आहूजा, इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार छंगानी चित्रकला विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. राजाराम चोयल और सेंटर फॉर म्यूजियम एंड डॉक्यूमेंटेशन की निदेशक डॉ मेघना शर्मा, प्रकाशन विभाग की प्रभारी डॉ॰संतोष कंवर शेखावत उपस्थित रहीं।

टूर निदेशक डॉ॰मेघना शर्मा ने बताया कि चतुष्कोणीय आकृति में बना हुआ जूनागढ़ दुर्ग  ‘भूमि दुर्ग’ की श्रेणी में आता है  जिसका निर्माण हिंदु और मुस्लिम शैली के समन्वय से हुआ है। स्थापत्य और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस किले के निर्माण में तुर्की शैली अपनाई गई है जिसके तहत दीवारें अंदर की तरफ झुकी हुई निर्मित की जाती है। किले में दिल्ली आगरा और लाहौर स्थित महलों की झलक ही प्राप्त होती है।

इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अनिल कुमार छंगाणी ने बताया के दुर्ग स्थापत्य में पर्यावरण संरक्षण का विशेष ध्यान रखते हुए कई प्रकार के जल संरचनाऐं प्राप्त होती हैं जिनमें बावड़ियां और हम्माम आदि प्रमुख हैं। मरुस्थल के क्लिष्ट मौसमी परिस्थितियों को देखते हुए दुर्गों में जल निकास को ग्रिड सिस्टम के माध्यम से व्यवस्थित किया गया । इन दुर्गों में इको फ्रेंडली टॉयलेट की उपलब्धता तत्कालीन युग की उच्चतम तकनीक का ब्यौरा अपने आप में प्रस्तुत करती है। विज़िट के दौरान विद्यार्थियों ने जाना कि  जैसलमेर मूल के निवासी से शासक कर्ण सिंह गोलकुंडा अभियान पर मिले और उसके द्वारा भेंट की गई सोने के काम की कलाकृतियां बीकानेर के अनूप महल में सुशोभित की गई। महाराजा कर्ण सिंह ने उसे शाही संरक्षण प्रदान कर बीकानेर आमंत्रित किया और इसी कला शैली के समानांतर आगे चलकर उस्ता कला शैली का विकास हुआ जो बीकानेर को विश्व मानचित्र पर चित्रकला के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान प्रदान करती है।  इसका प्रभाव 18वीं शताब्दी की बीकानेर चित्रकला शैली पर स्पष्ट दिखाई देता है।