सीके न्यूज/छोटीकाशी। बीकानेर। केंद्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र बीकानेर में राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के तहत ग्रामीण युवाओं में उद्यमिता विकास के लिए ऊंटनी के दूध का प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ बुधवार को किया गया। स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी.सिंह ने बतौर अध्यक्षता करते हुए कहा कि जैसे-जैसे ऊंट का पारंपरिक महत्व और उपयोगिता कम होती जा रही है इसकी जनसंख्या पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। यह राज्य पशु है और इसके संरक्षण के वैकल्पिक उपाय भी है जैसे की ऊंटनी का दूध। ऊंटनी का दूध पौष्टिक दृष्टिकोण से उत्कृष्ट और औषधीय गुणों से भरपूर है। ऊंटनी दूध के लाभकारी तत्वों से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। ऊंटनी दूध की वैश्विक मांग में वृद्धि के कारण, दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में उष्ट्र पालन के प्रति दिलचस्पी बढ़ रही है। प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक डॉ.एन.के. शर्मा, राष्ट्रीय बीज परियोजना, अतिरिक्त अनुसंधान निदेशक (बीज) ने बताया कि इस सात दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ ए साहू निदेशक राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र रहे। प्रशिक्षण कार्यक्रम में कई जिलों के 50 से अधिक प्रतिभागियों ने पंजीकरण करवाया है। प्रशिक्षण प्रथम दिवस पर डॉ ए.साहू ने शुष्क क्षेत्र में ऊंटनी के दूध की संभावनाएं विषय, डॉ आर.के.सावल प्रमुख वैज्ञानिक, एनआरसी-ऊंट ने मानव उपभोग के लिए ऊंट के दूध के मूल्य वर्धित उत्पाद और ऊंट में अधिक दूध उत्पादन के लिए पोषण प्रबंधन विषय पर व्याख्यान दिया। डॉ वेदप्रकाश वरिष्ठ वैज्ञानिक ने शुष्क क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन के लिए उपयुक्त ऊंट नस्लें और ऊंटनी के दूध का दुहना और पाश्चुरीकरण पर जानकारी दी। कार्यक्रम समन्वयक डॉ उपेंद्र कुमार और सह.समन्वयक डॉ आर.के. सावल एवं डा शंकर लाल रहे।
NRCC में कार्यक्रम : 'ऊंटनी दूध की वैश्विक मांग में वृद्धि, दुनिया के कई क्षेत्रों में उष्ट्र पालन के प्रति बढ़ी दिलचस्पी'