बीकानेर, 22 नवम्बर। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की ओर से रविवार को पुरातत्त्ववेत्ता-बहुभाषाविद् डाॅ. एल. पी. तैस्सितोरी की 101 वीं पुण्यतिथि पर उनके समाधि-स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित की गई व उनके कृतित्व से प्रेरणा लेकर राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति के उन्नयन के लिए पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करने का संकल्प लिया गया। इस अवसर पर कथाकार व अकादमी सचिव शरद केवलिया ने कहा कि डाॅ. तैस्सितोरी ने भारत व यूरोप के मध्य भाषिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक सेतु के रूप में कार्य किया। उन्होंने इटली से भारत आकर भारतीय संस्कृति, भाषा-साहित्य, पुरातत्त्व की दिशा में अविस्मरणीय योगदान दिया। डाॅ. तैस्सितोरी ने केवल पच्चीस वर्ष की उम्र में पुरानी राजस्थानी, संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश, हिन्दी, मारवाड़ी, गुजराती, ब्रज, अंग्रेजी, लेटिन, ग्रीक आदि का भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्होंने सन् 1915 में बीकानेर आकर इस क्षेत्र का ऐतिहासिक सर्वेक्षण कर, बड़ी संख्या में प्रागैतिहासिककालीन सामग्री सहित सैकड़ों प्रतिमाओं, शिलालेखों, मुद्राओं की खोज करी व गांव-गांव जाकर दुर्लभ प्राचीन ग्रंथों-पांडुलिपियांे का संग्रह किया। उनका केवल 32 वर्ष की अल्पायु में ही निधन हो गया था। इस अवसर पर सहायक प्रोग्रामर अमन पुरी, कानसिंह, मनोज मोदी ने भी डाॅ. तैस्सितोरी की समाधि पर पुष्प अर्पित किए व मोमबत्तियां जलाईं।