मुखिया के निधन पर पारीक परिवार नोखा की अनुकरणीय पहल


मृत्युभोज त्यागकर अपना घर आश्रम, विप्र केयर सहित अनेक संस्थाओं को दिया आर्थिक सहयोग


बीकानेर। अपने किसी परिजन को और वह भी यदि मुखिया रूपी पिता हो तो उन्हें खो देना संसार की सबसे बड़ी पीड़ा होती है, क्योंकि पिता ना सिर्फ भौतिक अस्तित्वदाता होते हैं अपितु संतान अपना निजी और सामाजिक जीवन किन आदर्शों के साथ व्यतीत करें इसके शिल्पकार भी वही होते हैं...। मुखिया के चले जाने के बाद परिजनों द्वारा उनकी यादों को चिरस्थाई बना देने वाले कार्य, उनके द्वारा सौंपी गई संस्कार विरासत को आगे बढ़ाने वाले निर्णय ही इस तथ्य का निर्धारण भी करते हैं कि उन्होंने अपना जीवन किन आदर्शों के साथ जिया था। पारीक परिवार, नोखा के समाजसेवी स्व. बजरंगलालजी पारीक का 10 नवम्बर 2020 को देवलोकगमन हो गया था। विश्वव्याप्त महामारी कोरोना ने इस समय उज्ज्वल मानवता पर जैसे ग्रहण सा लगा रखा है ऐसे में इस परिवार के द्वारा अपने मुखिया के देवलोकगमन पर कोई बैठक नहीं रखना व मृत्यु पर भोज का आयोजन नहीं करना ना सिर्फ साहसिक अपितु अनुकरणीय उदाहरण रहा। उनके सुपुत्रों डॉ पवन कुमार, प्रदीप पारीक व इनकी मातुश्री श्रीमती काशीदेवीजी व भ्राता संपतलाल पारीक द्वारा दिवंगत आत्मा की यादों को चिरस्थाई स्वरूप प्रदान करने के लिए कुल 7 लाख 21000  रुपये का अर्थ दान किया।  जिसमें  मानव सेवा के जीते जागते मंदिर कहे जाने वाले "अपना घर" आश्रम को पांच लाख रुपये की राशि (एक कमरा व 5 बेड) भेंट किये गए। साथ ही इसी परिवार ने 2.21 लाख रुपये जिसमें विप्र फाउंडेशन के कोरोना सहायता कोष "विप्र केयर", स्थानीय गंगा गोशाला, इंद्रा रसोई व कुलदेवी कुंजल माता मंदिर में भी राशि भेंट कर जरूरतमंदों की सहायता का हाथ बढ़ाया है। डॉ पारीक बताते हैं, ऐसे पावन कार्य ना सिर्फ दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करते हैं अपितु अन्य समाजजनों हेतु भी ऐसे प्रतिमान रूपी मार्ग का निर्माण करते हैं जिन पर चलकर जीवन को सार्थकता प्रदान की जा सकती। उल्लेखनीय है कि डॉ पवन पारीक विप्र फाउंडेशन के राष्ट्रीय महामंत्री है और विश्व विख्यात मानव सेवा केंद्र "अपना घर" तथा कुंजलमाता ट्रस्ट से भी तन, मन व धन से समर्पित भाव से लंबे समय से जुड़ें हुए हैं।