बीकानेर, 19 जुलाई (छोटीकाशी डॉट पेज)। भारतीय पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी (इसार) एवं वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर के संयुक्त तत्वावधान में अश्व प्रजनन विषय पर रविवार को अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार के मुख्य अतिथि भारतीय पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो वी चन्द्रशेखरमूर्ति ने बताया कि अश्वों के उपयोग का अतीत भारतीय संस्कृति में लगभग 4000 वर्ष पुराना है तथा इसका वेदो में भी उल्लेख है। अश्वों की भारत में कई नस्लें है। भारत में अश्वों की संख्या 1951 में 15 लाख थी जो कि 2019 में 3.4 लाख रह गई है। अश्व दौड़ से भारत सरकार को 2016 में 600 करोड़ रूपयों की आमदनी हुई थी जो कि 2019 में केवल 220 करोड़ रूपये रह गई है। अत: अश्वों की घटती हुई संख्या एवं आर्थिक नुकसान को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है। वेबिनार में चर्चा के दौरान कुलपति प्रो. विष्णु शर्मा ने बताया कि अश्व सदा ही राजस्थानी शौर्य एवं राजशाही परम्परा के प्रतीक रहे है तथा अर्थव्यवस्था में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है अत: इस वेबिनार के माध्यम से विभिन्न अश्वपालकों एवं अश्व अनुसंधान, अश्व स्वास्थ्य एवं अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रहे पशुचिकित्सकों को नवीनतम जानकारी उपलब्ध होगी एवं वेबिनार के दौरान चर्चा से लाभदायक परिणाम सामने आयेंगे। भारतीय पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी के राजस्थान चैप्टर के अध्यक्ष प्रो गोविन्द नारायण पुरोहित ने अश्व प्रजनन की विशेषताओं के बारे में जानकारी दी। डॉ टी.आर. तालुरी, वैज्ञानिक, अश्व अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने अश्वों में कृत्रिम वीर्य संकलन एवं गर्भ परीक्षण के विषय पर विस्तृत रूप से बताया। डॉ दिनेश झाम्ब, सहायक प्रध्यापक, वेटरनरी कॉलेज, नवानियां उदयपुर ने अश्वों में बांझपन एवं उसके निराकरण के बारे में बताया। वेबिनार आयोजन सचिव एवं उपाध्यक्ष पशु प्रजनन अध्ययन सोसाइटी प्रो जे.एस. मेहत्ता ने कुलपति, मुख्य अतिथि एवं अन्य वक्ताओं का स्वागत किया। डॉ सुमन्त व्यास, प्रधान वैज्ञानिक उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं वेबिनार आयोजन में सहयोगकर्ताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अन्तर्राष्ट्रीय आनलाईन वेबिनार में 21 देशों के कुल 946 प्रतिभागियों ने पंजीकृत किया। डॉ संदीप धौलपुरिया, डॉ अशोक खीचड, डॉ अमित चौधरी एवं डॉ अशोक डांगी ने सहभागिता निभाई।