न्यूजडेस्क। एक जून को चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में अमरीका में हो रही हिंसक वारदातों की फोटो छपी है। फोटो के साथ लिखा गया है कि ये फोटो हॉगकॉग से भी खूबसूरत है। खबर में अमरीका पर कई कटाक्ष किए गए हैं। यानि इन दिनों अमरीका में जो हिंसा हो रही है उससे चीन बहुत खुश है। चीन की इस खुशी से भारत को सतर्क हो जाना चाहिए। अभी यह तो नहीं कहा जा सकता कि अमरीका हिंसा के पीछे चीन का हाथ है, लेकिन अपने कब्जे वाले हांगकांग की घटनाओं को अमरीका की घटनाओ से जोड़कर चीन ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। सब जानते हैं कि भारत और अमरीका में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। लोकतंत्र में न केवल बोलने की आजादी होती है बल्कि हिंसक प्रदर्शनों के समर्थक भी मिल जाते हैं। जबकि चीन जैसे तानाशाह मुल्क में न बोलने की आजादी और न प्रदर्शन करने की छूट होती है। हिंसक प्रदर्शन का तो सवाल ही नहीं उठता। चूंकि खबरें बाहर नहीं आ पाती है, इसलिए यह पता ही नहीं चलता चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार किस बेरहमी से प्रदर्शनकारियों को कुचल रही है। सब जानते हैं कि चीन के मुस्लिम बहुल्य झीनझियांग प्रांत में कम्युनिस्ट पुलिस ने मुसलमानों पर कितने अत्याचार किए हैं। यहां तक मुसलमानों को डिटेंशन कैम्पों में भी रखा गया है। लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को कभी भी चीन की ज्यादती नजर नहीं आती। कोरोना वायरस को फैलाने में जब दुनियाभर में चीन घिर चुका है, तब अमरीका की हिंसा से चीन को राहत दिलवाने वाली है। कोरोना को लेकर चीन के खिलाफ सबसे पहले अमरीका ही खड़ा हुआ था। अमरीका ने दुनिया के 120 देशों को चीन के खिलाफ एकजुट कर दिया। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप भी लगाया कि अमरीका को आर्थिक दृष्टि से नुकसान पहुंचाने के लिए चीन ने ही कोरोना वायरस तैयार किया है। कोरोना से अमरीका में अब तक एक लाख से भी ज्यादा मौते हो चुकी हैं और संक्रमितों की संख्या तो चार लाख को पार कर रही है। जब अमरीका चीन के कोरोना से अपने ही घर में युद्ध कर रहा है, तब अश्वेतों की ङ्क्षहसा अमरीका का घरेलू मामला है, लेकिन चीन को इसमें भी मजा आ रहा है। एक अश्वेत जार्ज की गर्दन को घुटने से दबाते हुए एक श्वेत पुलिस कर्मी का फोटो प्रकाशित होने के बाद ही अमरीका में हिंसा भड़की है। संयुक्त राष्ट्र अमरकी में काले (अश्वेत) और गौरों (श्वेत) के बीच झगड़ों का इतिहास पुराना है, लेकिन ताजा हिंसा की वजह से अमरीका के 40 शहरों में कफ्र्यू लगाना पड़ा है। हालात इतने खराब है कि राजधानी वाशिंगटन में राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस के बाहर भी आगजनी हो रही है। हालात को देखते हुए कुछदेर के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप को सेना के बंकर में सुरक्षित रखा गया। अमरीका के ऐसे हालातों पर ही चीन खुश हो रहा है। सवाल उठता है कि यदि चीन में ऐसे हालात होते तो क्या होता? पहली बात तो यह कि तानाशाह मुल्क चीन में पुलिस अधिकारी का घुटने वाला फोटो सामने ही नहीं आता। और फिर कोई विरोध की हिमाकत करता तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता। डोनाल्ड टं्रप को दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए इसी वर्ष नवम्बर में चुनाव जीतना है। चुनाव में अश्वेत भी वोट देंगे, इसलिए टं्रप प्रशासन को बहुत कुछ बर्दाश्त करना पड़ रहा है। जबकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का चुनाव से कोई मतलब नहीं है। अब तो जिनपिंग ने आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का जुगाड़ कर लिया है। चीन में भारत की तरह विपक्षी दलों में राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी जैसी नेता भी नहीं है। शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी ही पक्ष और विपक्ष की भूमिका निभाती है। अमरीका की हिंसा पर चीन ने जो प्रतिक्रिया दी है उससे भारत को सतर्क होना चाहिए। क्योंकि आर्थिक मोर्चे पर चीन के खिलाफ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी झंडाबरदार बने हुए हैं। चीन को मात देने के लिए ही मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है।
(साभार : एसपी.मित्तल)