संतों के चरण पड़ना सौभाग्य की बात – आचार्य महाश्रमण






उदासर में तेरापंथ प्रणेता का भव्य स्वागत, पूज्यप्रवर ने दी सौहार्द भाव को जागृत करने की प्रेरणा


बीकानेर - जनकल्याण के लिए अनवरत गतिमान अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज उदासर में मंगल पदार्पण हुआ। लगभग 08 वर्षों पश्चात पुनः उदासर पदार्पण पर आचार्यश्री के स्वागत में आज मानों पूरा नगर उमड़ पड़ा। जैन–अजैन हर कोई युगप्रधान के एक दर्शन पाने को लालायित नजर आरहा था। सोमवार प्रातः आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पनपालसर मंगल प्रस्थान किया। जैसे–जैसे ज्योतिचरण उदासर की ओर बढ़ रहे थे स्वागत में श्रद्धालुओं की उपस्थिति भी बढ़ती जा रही थी। बच्चों से लेकर बड़ों तक गणवेश में विशाल जुलूस में सम्मिलित होकर जय–जयकारों से आराध्य का अभिनंदन कर रहे थे। लगभग 14 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर आचार्यश्री उदासर के तेरापंथ भवन में प्रवास हेतु पधारे। 

प्रवचन सभा में प्रेरणा देते हुए युगप्रधान ने कहा – हमारे इस मानव शरीर में पांच इन्द्रियां है, उसमें एक श्रोतेन्द्रिय है और एक चक्षु इन्द्रिय है। कान एवं आंख हमारे ज्ञान के मुख्य माध्यम है। सुनकर कल्याण व अकल्याण दोनों को जाना जा सकता है। सत्य व असत्य को जानकर जो अनुपयोगी है उसे छोड़ देना चाहिए और जो उपयोगी, लाभप्रद है उसका आचरण करना चाहिए। संत दूसरों को लाभ देने वाले होते है और वह अपने आत्मोदय के साथ दूसरों का उपकार करने वाले होते है। जैसे पेड़ ताप को सहन करने के बाद भी पथिक को ठंडी छाया देता है वैसे ही संत लम्बी यात्राएं करते हुए भी दूसरों का उपकार व हित करते है।

आचार्यप्रवर ने आगे कहा की संत न होते जगत में जल जाता संसार। इस धरती पर संतों के चरण पड़ना भी धरती का सौभाग्य है। भारत ऋषि, मुनियों की भूमि है। विभिन्न भाषाओं, जातियों व संस्कृतियों वाला देश है। लेकिन इस भिन्नता में भी अभिन्नता रहे, परस्पर सौहार्द व मैत्री की भावना का वतावरण रहे यह अपेक्षा है। जीवन में अच्छाई की भावना को जागृत करे तो इस मानव भव को सुफल बनाया जा सकता है। उदासर आगमन के संदर्भ में गुरुदेव ने कहा की आज उदासर आना हुआ है। यहां के श्रावक समाज में धर्मराधना का क्रम बढ़ता रहे। सभी में धार्मिक चेतना बढ़ती रहे।

इस अवसर पर साध्वी प्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित वक्तव्य दिया। विचाराभिव्यक्ति के क्रम में साध्वी कांतयशा जी, साध्वी श्री गुणप्रेक्षा जी ने अपने भाव रखें। साध्वीश्री शशिरेखा जी आदि साध्वियों ने गीतिका का संगान किया। उदासर तेरापंथ सभाध्यक्ष श्री हडमान महनोत, मुमुक्षु रश्मि, उदयचंद चोपड़ा, जितेंद्र दुगड़ ने अपने विचार रखे। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, महनोत बंधुओं एवं ज्ञानशाला के बच्चों ने पृथक–पृथक रूप में गीत की प्रस्तुति दी।