डा विमला डुकवाल : 'कैमल मिल्क' की औषधीयता को आमजन तक पहुंचाना होगा'







बीकानेर, 26 मार्च (सीके न्यूज/छोटीकाशी)। ऊंटनी के दूध की औषधीयता, इसे विविध रूपों में बाजार तक लाने की मांग कर रही है ताकि आमजन को दूध एवं इससे निर्मित स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों का लाभ मिल सके। वहीं ऊंटपालकों की आय में बढ़ोत्तरी हो सकेगी। ये विचार शनिवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र (एनआरसीसी) में आयोजित 'उष्ट्र डेयरी उद्यमिता विकास एवं उष्ट्र स्वास्थ्य प्रबंधन' विषयक तीन दिवसीय एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम (24 से 26 मार्च) के समापन पर मुख्‍य अतिथि प्रो विमला डुकवाल, अधिष्ठाता, स्‍नातकोत्तर अध्ययन, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विवि बीकानेर ने व्यक्त किए। प्रो डुकवाल ने गुजरात (कच्छ) से आए युवा प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि देश में आज का दौर, मात्रा के स्थान पर गुणवत्ता का है तथा प्रतिद्वंदी बाजार में उपभोक्ता द्वारा दूध एवं दुग्ध उत्पादों का चयन, औषधीय गुणों के आधार पर किए जाने का दौर है तो इस परिप्रेक्ष्य में ऊंटनी का दूध एकदम सटीक बैठता है क्योंकि यह औषधीय गुणधर्मों से भरपूर है। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत के निर्माण हेतु कौशल विकास प्रशिक्षण को अत्‍यंत जरूरी बताया। मुख्य अतिथि ने ऊंटों के परंपरागत उपयोग, सांस्कृतिक संरक्षण, ऊंटनी के दूध का पोषकीय मान एवं भ्रांतियों की समाप्ति, दूध की उपभोक्ताओं में मांग, युवाओं द्वारा उष्‍ट्र पालन व्यवसाय को आगे ले जाने आदि विभिन्न मुद्दों व पहलुओं पर बातचीत करते हुए एनआरसीसी द्वारा अनुसंधान के साथ दूध व पर्यटन के क्षेत्र में किए जा रहे सक्रिय प्रयासों की भी सराहना कीं। केन्द्र निदेशक डॉ आर्तबन्‍धु साहू ने ऊंट को 'औषधी भण्डार' की संज्ञा देते हुए कहा कि इसके दूध में अनेकों औषधीय गुण पाए गए हैं तथा यह कई बीमारियों में कारगर सिद्ध हुआ है। डॉ साहू ने कहा कि प्रशिक्षण उपरांत गुजरात राज्य में ऊंटनी के दूध व्यवसाय के साथ.साथ ऊंटों की बहुआयामी उपयोगिता पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए तथा ट्रेनिंग में प्राप्त ज्ञान को प्रशिक्षणार्थी, अधिकाधिक ऊंट पालकों व किसानों तक पहुँचाएं। इस अवसर पर प्रो डुकवाल द्वारा प्रशिक्षण से जुड़ी 'उद्यमिता विकास हेतु उष्ट्र डेरी और दूध प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियां' विषयक कम्पेंडियम का विमोचन किया गया एवं प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण.पत्र वितरित किए गए। प्रशिक्षणार्थियों की ओर से सहजीवन संस्‍था, गुजरात के प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर महेश गरवा ने एनआरसीसी द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम को अत्यंत उपयोगी बताया तथा आश्वस्त किया कि प्रशिक्षण में प्राप्त कौशल से ऊंटनी के दूध से विभिन्न दुग्ध उत्पादों बनाने का व्यवसाय प्रारम्भ करेंगे। कार्यक्रम समन्वयक डॉ शिरीष नारनवरे, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने प्रशिक्षण के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए इस त्रि.दिवसीय प्रशिक्षण में किए गए ऊंटपालकों के कौशल विकास से अवगत करवाया। डॉ श्याम सुन्दर चौधरी, वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक ने सभी के प्रति आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।