'मगरे रा मोती-मिनजी रतनू' का लोकार्पण जैसलमेर महारावल चैतन्य राजसिंह बीकानेर में 13 मार्च को करेंगे












देश के जाने-माने डिंगल कवि वरिष्ठ साहित्यकार भंवर पृथ्वीराज रतनू ने राजस्थानी भाषा में लिखी पुस्तक


बीकानेर, 27 फरवरी (सीके न्यूज, छोटीकाशी)। विश्वविख्यात मॉरिशस के जनक स्वामी श्री कृष्णानंद सरस्वती के पुत्र और देश के जाने-माने डिंगल कवि, राजस्थानी लोक संस्कृति के मूर्धन्य विद्वान वरिष्ठ साहित्यकार भंवर पृथ्वीराज रतनू की भाटी व राठौड़ वंश के बीच हुए तनाव और फिर समझौते से उल्लेखित राजस्थानी भाषा में लिखी पुस्तक 'मगरे रा मोती'-मिनजी रतनूं का विमोचन की रविवार को घोषणा कर दी गयी। जैसलमेर महारावल चैतन्य राजसिंह अगले महीने 13 मार्च को संभाग मुख्यालय बीकानेर के टाऊन हॉल में अपने हाथों से इसका विमोचन करेंगे। इतिहास की बड़ी गाथा को इस पुस्तक में समायोजित करने का प्रयास किया गया है। सतत मानव सेवा भारतीय संस्कृति एवं कला के लिए सतत प्रयासरत भंवर पृथ्वीराज रतनू ने रविवार को अपने निवास पर आयोजित प्रेस-कांफ्रेंस में अपने पुत्र जगदीशनदान रतनू व आयोजन समिति के सदस्य, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग राजस्थान के सहायक निदेशक हिंगलाजदान रतनू के साथ पत्रकारों को बताया कि उन्होंने हिन्दी भाषा और डिंगल भाषा में तो सैकड़ों पुस्तकें लिखी है लेकिन इस बार राजस्थानी भाषा में पुस्तक लिखी है। उन्होंने बताया कि 'मैं बड़ी परम्परा का वाहक हूं, तब के समय मिनजी के पिता चैन्ननाथ जी ने गडिय़ाला को लूटने के लिए बचाया लेकिन उस लड़ाई में वो मारे गए। बाद में उनके पुत्र मिनजी ने राज्यों की आपस में भिडंत हुई सेना को समझाने की कोशिश की लेकिन जब सेना नहीं मानी तो कटारी खाकर बलिदान दिया। उस समय ऐसी परम्परा थी कि राजपूत लोग चारण का उल्लंघन नहीं करे। तो लड़ाई रुक गयी और सैकड़ों लोगों का रक्तपात्र रुक गया। रतनू ने बताया कि मिनजी की स्मृति में यह पुस्तक लिखी गयी है। उन्होंने यह भी बताया कि कोलायत तहसील मगरा क्षेत्र कहलाता है। पुस्तक 'मगरे रा मोती' मिनजी रतनू लिखी गयी है जो भाटी और रतनू दो वंशों का आपस में सम्बन्धों का निरुपण करता है कि इनके आपस में एक हजार वर्ष तक कैसे सम्बन्ध रहे, देश सेवा के सम्बन्ध रहे। इसलिए यह पुस्तक लिखी है। प्रेस-कांफ्रेंस में मौजूद सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग राजस्थान के सहायक निदेशक हिंगलाजदान रतनू ने बताया कि भाटी और राठौड़ राजवंश की राड़ को रोकने का बलिदान देने वाले मिनजी रतनू की स्मृति में पुस्तक लिखी गयी है।


भंवर पृथ्वीराज रतनू बोले ; राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए प्रयास कर रहे हैं


वरिष्ठ साहित्यकार भंवर पृथ्वीराज रतनू ने पत्रकारों से कहा कि देश और दुनिया में लगभग 8 से 10 करोड़ लोग बसे हुए हैं। राजस्थानी भाषा को मान्यता देना या यूं कहें कि प्रोत्साहन मिलना अब जरुरी हो गया है। इससे हिन्दी को कोई नुकसान नहीं होगा। बल्कि विश्व साहित्य में हिन्दी का विस्तार ही होगा। रतनू ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में राजस्थानी भाषा का दर्ज नहीं होना चिंता की बात है। राजनीति इसमें आड़े नहीं आनी चाहिए। राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए वे भी काफी प्रयास कर चुके हैं और यदि शीघ्र ही भाषा को मान्यता मिल गयी तो न केवल राजस्थानी के लोगों को मान-सम्मान मिलेगा बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। भाषा मान्यता के लिए संगठित प्रयास करना जरुरी है। उन्होंने युवाओं का आह्वान भी किया राजस्थानी भाषा लिखो तो 'प्योर भाषा' लिखो।