दलहन के लिए धान गेहूं की तरह मंडियों का जाल बिछाया जाए, दालों की खेती को बढ़ावा देने से देश टिकाऊ खेती की दिशा में बढ़ेगा




बीकानेर, 18 जून (सीके न्यूज/छोटीकाशी)। राजस्थान में बीकानेर स्थित स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अनुसंधान केंद्र श्रीगंगानगर द्वारा कुलपति प्रो.आर.पी. सिंह की अध्यक्षता में शुक्रवार को वर्चुअल मूंग संवाद 2021 आयोजित की गयी। वर्चुअल कार्यक्रम में 60 किसानों ने भाग लेकर विषय विशेषज्ञ कृषि वैज्ञानिकों जानकारियां प्राप्त की। कार्यक्रम में कुलपति ने जानकारी दी की भारतीय कृषि पद्धति में जिलों की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। चना, मसूर, खेसरी, मटर, राजमा की रबि ऋतु में खेती की जाती है। हमारे देश में दलहनी फसलों की पैदावार विकसित देशों की अपेक्षा काफी कम आती है। एक अनुमान के अनुसार देश में दालों की वार्षिक खपत लगभग 18 मिलियन टन है और उत्पादन 13 से 14.8 मिलियन टन रहता है इस प्रकार देश को 3 से 4 मिलियन टन दालों का आयात करना पड़ता है। देश के प्रमुख दलहन उत्पादन करने वाले राज्यों में राजस्थान का भी मुख्य स्थान है। देश में प्रति व्यक्ति कम से कम उपलब्धता 50 ग्राम प्रतिदिन तथा बीज आदि के लिए 10 प्रतिशत दलहन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 2030 तक 32 मिलियन टन दलहन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि दलहनी फसलों की खेती भी अच्छी भूमियों में बेहतर सस्य प्रबंधन के आधार पर की जाए। उन्होंने बताया कि विशेषज्ञों की राय के अनुसार गेहूं, चावल, गन्ना, कपास की पैदावार बढ्ने का कारण सुनिश्चित मूल्य एवं सुनिश्चित बाजार है। लेकिन दालों का उत्पादन नहीं बढ़ पाया है यद्यपि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर रही है किंतु पैदावार की सरकारी खरीद का कोई कारगर प्रणाली नहीं है सुनिश्चित खरीद ना होने के कारण किसानों को बाजार में सस्ते दामों में उपज बेचने पड़ती है। इसलिए किसानों का दालों की खेती से रुझान कम हो रहा है। देश में दलहन के लिए उपयुक्त क्षेत्रों को चिन्हित किया जाना चाहिए और धान गेहूं की तरह मंडियों का जाल बिछाया जाए, न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के साथ साथ सरकार दलहन की पूरी उपज की सरकारी खरीद की जाए दालों की पैदावार के लिए बहुत उपजाऊ जमीन और अधिक पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती साथ ही यह मिट्टी में नाइट्रोजन का स्तर भी बढ़ाती है दालों की खेती को बढ़ावा देने से देश टिकाऊ खेती की दिशा में बढ़ेगा और किसान भी गरीबी के चक्रव्यूह से निकल पाएंगे। डॉ बी.एस. मीणा ने मूंग संवाद कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। डॉ आर पी एस चौहान ने श्रीगंगानगर खंड में मूंग का परिदृश्य पर व्याख्यान दिया। डॉ राजेश यादव ने मूंग की उन्नत किस्में व उनके गुणों के बारे में बताया, डॉ विजय प्रकाश ने मूंग की उन्नत उत्पादन तकनीक एवं प्रबंधन के बारे में चर्चा की वहीं डॉ रूप सिंह मीणा ने मूंग में कीट प्रबंधन के बारे में किसानों को बताया।