उष्ट्र पर्यटन : सजावटी ऊन कल्पन का महत्व पर आयोजित कार्यक्रम में ऊंटपालकों, किसानों ने उठाया प्रशिक्षण का लाभ





बीकानेर, 5 मार्च (सीके न्यूज/छोटीकाशी)। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र द्वारा अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत 'उष्ट्र पर्यटन: सजावटी ऊन कल्पन का महत्व' विषय पर आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुक्रवार को समापन हुआ। केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने संबंधी इस प्रशिक्षण को आत्मनिर्भर भारत विजन से जोड़ते हुए कहा कि उष्ट्र पर्यटनीय दृष्टिकोण से सजावटी ऊँट का विभिन्न कला-सांस्कृतिक अवसरों यथा-ऊँट उत्सव, धार्मिक मेलों, त्योहार आदि के दौरान विषेष महत्व देखा जा सकता है। ऊँट के शरीर पर ऊन कल्पन द्वारा चित्रांकन से जुड़े इस विशेष हुनर (कला) से सीमित ऊँट पालक या कारीगर ही जुड़े हैं। अत: केन्द्र का इस प्रशिक्षण आयोजन के पीछे मुख्य ध्येय रहा कि इस व्यवसाय से अधिकाधिक ऊँट पालक व किसान भाई प्रशिक्षित होकर उष्ट्र ऊन कल्पन व्यवसाय को एक आजीविका के तौर पर अपनाते हुए आत्मनिर्भर बनें साथ ही इस हुनर का आगे हस्तांतरण भी करें। इस प्रयोजनार्थ केन्द्र ग्राम स्तर पर मांग आधार पर ऊँटों के वितरण पर भी प्राथमिकता पर विचार करेगा। डॉ.साहू ने अनुसंधान के साथ-साथ ऐसे जमीनी स्तर पर आयोजित प्रषिक्षणों एवं ऊँटों से जुड़ी विभिन्न प्रतिस्पद्र्धाओं में सहभागिता हेतु प्रोत्साहित करते हुए कहा कि केन्द्र, ऊँटों के दूध, हड्डी, चमड़े, नृत्य, दौड़ आदि आयामों संबंधी प्रशिक्षणों के माध्यम से ऊँट पालन व्यवसाय के समग्र सुदृढ़ीकरण की दिषा में कार्य करने हेतु ऊँटों के विविध आयामों से सम्बद्ध अनुभवी कलाकारों-कारीगरों, हितधारकों से सम्पर्क साधते हुए ऊँट पालकों की समाजार्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव लाना चाहेगा। ऊन कल्पन का व्यावहारिक प्रषिक्षण, ऊँटों में ऊन उत्पादन क्षमता, उष्ट्र ऊन से बने पदार्थ, सजावटी ऊन कल्पन क्षेत्र में उद्यमशीलता आदि विविध आयामों से जुड़े इस महत्वपूर्ण प्रषिक्षण में बीकानेर के विविध गांवों यथा-केसरदेसर बोहरान, हिमतासर, बिगाबास आदि के कुल 16 ऊँट पालकों एवं किसानों ने इस प्रषिक्षण का लाभ उठाया। व्यावहारिक प्रषिक्षण एवं वैज्ञानिक संवाद से जुड़े इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों ने अपने विषेष रूचि प्रदर्षित करते हुए पारंगत कारीगरों के साथ एनआरसीसी के ऊँटों पर विभिन्न आकृतियों को भी उकेरा। 

प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन पर विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे डॉ.एस.सी.मेहता, अध्यक्ष, भाकृअनुप-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, अश्व उत्पादन परिसर, बीकानेर ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा आयोजित उष्ट्र ऊन कल्पन प्रशिक्षण समय की मांग है। आज आवश्यकता इस बात की है कि ऊँट पालन को लाभदायक बनाने हेतु दूध, बाल, पर्यटन आदि की दृष्टि से समन्वित प्रयास किए जाए। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के प्रशिक्षण अधिकारी डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने प्रषिक्षण सम्बन्धी विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। प्रतिभागियों की ओर से उष्ट्र ऊन कल्पन विशेषज्ञ अमराराम नायक ने एनआरसीसी द्वारा आयोजित इस प्रषिक्षण को विषेष लाभदायक बताते हुए एनआरसीसी की अन्य गतिविधियों से जुडऩे की बात कही। केन्द्र निदेशक एवं अतिथियों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रतिभागी प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण-पत्र एवं पारितोषिक वितरित किए गए। सह प्रशिक्षण अधिकारी डॉ.वेद प्रकाश ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया।