पहले प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए राज्यवार आईएएस नियुक्ति किए।


अब प्रवासियों से कोरोना संक्रमण रोकने के लिए जिलावार आईएएस लगाए।
राजस्थान में यह क्या हो रहा है? कहां है प्रभारी सचिव और गहलोत सरकार के मंत्री?


न्यूजडेस्क। कोरोना वायरस के नियंत्रण को लेकर 20 मई को भी राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने प्रदेश के डीजी, आईजी, कलेक्टर, एसपी आदि बड़े अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संवाद किया। चूंकि सीएम की वीसी दिनभर चली, इसलिए जिला मुख्यालय पर कामकाज पूरी तरह ठप रहा। ऐसा प्रतीत होता है कि सीएम गहलोत सिर्फ अफसरशाही के भरोसे ही कोरोना युद्ध जीतना चाहते हैं, लेकिन कोरोना को लेकर सरकार की रणनीति कैसी है, यह प्रवासी मजदूरों के प्रकरण से समझी जा सकती है। यदि अफसरों की रणनीति सफल होती है तो सरकार को बारबार आईएएस अफसरों की नियुक्ति नहीं करनी होती। 19 मई को ही एक आदेश निकाल कर प्रदेश के 11 जिलों में वरिष्ठ आईएएस की नियुक्तियां की गई है। इन 11 जिलों में यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों से बड़ी संख्या में प्रवासी राजस्थानी मजदूर आएं हैं। अब इन मजदूरों की वजह से इन जिलों में संक्रमण फैल रहा है। प्रदेश में अब प्रतिदिन 300 से भी ज्यादा कोरोना पॉजिटिव केस सामने आ रहे हैं। प्रवासी मजदूरों के आने से पहले तक जो राजस्थान स्वयं को अन्य राज्यों के मुकाबले में सुरक्षित महसूस कर रहा था, वहीं प्रदेश अब घबराया हुआ है। यही वजह है कि वरिष्ठ आईएएस को संक्रमित वाले जिलों में भेजा गया है ताकि जिला प्रशासन के साथ बेहतर तालमेल किया जा सके। यह वैसा ही निर्णय है जैसे किसी फटे पायजामे पर एक और अस्तर (कपड़ा) चिपका दिया जाए। सवाल उठता है कि प्रवासी मजदूरों को लाने से पहले संक्रमण रोकने की योजना क्यों नहीं बनाई गई? यदि मजदूरों के आने से पहले ही इन जिलों में चिकित्सा सेवाएं दुरस्त कर दी जाती तो आज यह स्थिति नहीं होती। सब जानते हैं कि प्रवासी मजदूरों को अन्य राज्यों से लाने के लिए भी सरकार ने राज्यवार आईएएस नियुक्त किए थे। अभी प्रवासी मजदूरों के आने का सिलसिला जारी ही है कि आईएएस को जिला स्तर पर तैनात कर दिया गया है। जिला स्तर पर नियुक्त आईएएस ही पूर्व में राज्यवार नियुक्त किए गए थे। यानि जो आईएएस प्रवासियों को ला रहे हैं वो ही आईएएस जिला स्तर पर प्रवासियों के संक्रमण को रोकेंगे। सवाल यह भी है कि क्या हर समस्या का समाधान ये आईएएस ही हैं? सीएम अशोक गहलोत माने या नहीं लेकिन जब किसी जिले में वरिष्ठ आईएएस को भेजा जाता है तो कलेक्टर की कुर्सी पर बैठा आईएएस स्वयं को असहज महसूस करता है। कई मौकों पर दोनों आईएएस के बीच टकराव भी हो जाता है। कलेक्टर को लगता है कि वह विफल है, इसलिए वरिष्ठ आईएएस को भेजा गया है। जिला स्तर पर तैनात अधीनस्थ अधिकारियों के सामने भी यह समस्या खड़ी हो जाती है कि किसका आदेश माना जाए। 
प्रभारी सचिव और मंत्री कहां हैं?:
11 जिलों में वरिष्ठ आईएएस नियुक्त करने से यह सवाल भी उठता है कि पहले से नियुक्त प्रभारी सचिव और मंत्री कहां हैं? प्रभारी सचिव के तौर पर भी वरिष्ठ आईएएस की नियुक्ति की जाती है। अच्छा होता कि संक्रमित जिलों में प्रभारी सचिव को ही भेजा जाता। प्रभारी सचिव के नाते ऐसे आईएएस का पहले से ही अपने जिले में बेहतर तालमेल होता है। सवाल यह भी है कि अशोक गहलोत अपने मंत्रियों का उपयोग क्यों नहीं करते? जिलों में प्रभारी मंत्री भी तो नियुक्त हैं, क्या मंत्री से ज्यादा योग्य और वफादार आईएएस हैं? या फिर सीएम गहलोत प्रशासन में मंत्रियों का दखल नहीं चाहते हैं? हालांकि पूर्व में कई मंत्री शिकायत कर चुके हैं कि उनके विभाग के आईएएस सुनते नहीं है, लेकिन गहलोत हमेशा अपने अफसरों के साथ रहे हैं। कोरोना वायरस से भी गहलोत अपने आईएएस टीम से ही जीतना चाहते हैं। एक आईएएस तो कई मोर्चे पर काम कर रहा है, जबकि सरकार के अधिकांश मंत्री अपने घर बैठे हैं। 
(साभार:एस.पी.मितल)