शांतिदूत महाश्रमण का मोरखाणा में मंगल पदार्पण




मोक्ष आत्मा की सर्वोत्कृष्ट स्थिति होती है, जहाँ एकान्तिक सुख - आचार्य महाश्रमण


बीकानेर। शांतिदूत, तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुशास्ता परम पूज्य आचार्य महाश्रमण का आज मोरखाणा में मंगल पदार्पण हुआ। श्री सुसवानी माता मंदिर के लिए प्रसिद्ध मोरखाणा में आचार्यवर के आगमन से मानों उत्सव सा माहौल छा गया। देश भर से पहुंचे हजारों श्रद्धालु आज मोरखाना धाम में तेरापंथ सरताज का भावभरा अभिनंदन कर रहे थे। इससे पूर्व प्रातः आचार्यश्री ने केसरदेसर से मंगल विहार किया। स्थान–स्थान पर ग्रामवासियों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर आचार्यप्रवर श्री सुसवाणी माता मंदिर परिसर में पधारे।  इस अवसर पर मंदिर के प्रमुख पुजारी सहित भक्त जनों ने शांतिदूत का हार्दिक स्वागत किया। उल्लेखनीय है कि श्री सुसवाणी माता दुगड़ एवं सुराणा गोत्र की कुलदेवी के रूप में ख्याति प्राप्त है। सन 2013 के पश्चात पुनः गुरुदेव का अभी यहां पधारना हुआ है। विहार के दौरान नोखा की एसडीएम स्वाति गुप्ता एवं विधायक बिहारीलाल विशनोई ने भी आचार्य श्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री ने कहा– आध्यात्मिक शास्त्रों में मोक्ष की बात आती है। मोक्ष आत्मा की सर्वोत्कृष्ट स्थिति होती है, जहाँ एकान्तिक सुख है वहा किसी प्रकार के दुःख के लिए अवकाश नहीं होता। हमारा परम लक्ष्य मोक्ष होना चाहिए। जीवन में मोह व राग-द्वेष के क्षय से ही मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। वितरागता की जब स्थिति आती है तब केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है व हम सम्पूर्ण ज्ञान के धनी बन जाते हैं। ज्ञान का बड़ा महत्व होता है, ज्ञान के साथ श्रद्धा का भी योग होना जरूरी है। हम ऐसे ज्ञान का अर्जन करें जिस ज्ञान के द्वारा राग से विराग की ओर, कल्याण की ओर व वैर से मैत्री भाव की ओर अग्रसर हो सकें। साधना का मूल है – वीतरागता। प्रियता अप्रियता में भी समता का भाव हमारे भीतर विकसित होना चाहिए। ज्ञान का पुनरावर्तन व स्वाध्याय भी चले।