CK NEWS/CHHOTIKASHI बीकानेर। होली के दिन बहन भुआ द्वारा माला घोलाई की परम्परा है इस दिन गोबर की माला घोलनी चाहिये न कि पुष्प माला। सस्कृतिकर्मी व रमक झमक के अध्यक्ष प्रहलाद ओझा 'भैरु' बताया कि गाय के गोबर को गोलाई में लगभग 3 इंच बनाकर सुखाकर उसे मुझ में पिरोया जाता है जिसे स्थानीय भाषा में भरभोलिया कहते है। इसके 4 वृत्ताकार भरभोलिया भाई के ऊपर से 7 बार घुमाने से 4 कोने,चारो दिशाओं से नेगेटिव एनर्जी उसमे समाहित हो जाती है और इसे होलिका में जला दिया जाता है जिससे सातों चक्रों का शोधन भी हो जाता है । इसके पीछे गाय प्रकृति का महत्व भी छिपा है लेकिन आजकल पुष्माला घोकर होली में जलाई जाती है जो कि निषेध है, भाई के आरोग्य व दीर्घायु के उधेश्य से माला घोलाई केवल भरभोलिया से ही करें । स्वागत सत्कार के रूप में भले ही माला पहना कर तिलक कर सकते है लेकिन उसे होलिका में न जलाए। ओझा ने कहा कि बुजुर्गों ने जो परंपराएं बनाई उसके पीछे गहरी सोच है मनोवैज्ञान और प्रकृति का संरक्षण मूल भाव भी है,जिसे अच्छे समझे आग्रह किया कि हम हमारी मौलिक परम्परा से न हटे,हमारी परंपरा हमारी सास्कृतिक धरोहर है।
माला घोळाई की परम्परा, गोबर मुझ की माला ही घोलें : प्रहलाद ओझा 'भैरु'
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