यह 'किसान आंदोलन' नहीं, अपितु देशविरोधी एक 'युध्द' : सुरेश चव्हाण




बीकानेर, 02 फरवरी (सीके मीडिया/छोटीकाशी)। सड़क पर आकर किसानों के लिए आंदोलन किया गया और सरकार, पुलिस भी कुछ नहीं कर पाए। न्यायालय ने भी केवल पर्यवेक्षक भेजकर सब कुछ पुलिस पर छोड दिया एवं पुलिस भी प्रतिकार नहीं कर पाई। इस आंदोलन में तलवारें और अन्य हथियारों का उपयोग किया गया, देशविरोधी नारे लगाए गए। यह आंदोलन नहीं है, अपितु देश के विरोध में एक युद्ध छेड़ा गया है। इसे युध्द न कहते हुए 'लोकतांत्रिक आंदोलन' कहा जा रहा है। इस आंदोलन में ऐसा क्या नहीं हुआ, जिसे हम अनैतिक और कानून विरोधी है। यह बात सुदर्शन वाहिनी के प्रमुख संपादक और अध्यक्ष सुरेश चव्हाण ने हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'चर्चा हिन्दू राष्ट्र की' के अंतर्गत किसान आंदोलन या देशविरोधी षड्यंत्र? इस विशेष परिसंवाद में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम 'यू ट्यूब लाइव' और 'फेसबुक' के माध्यम से 34000 से भी अधिक लोगों ने देखा। प्रसिध्द लेखिका और 'मानुषी' मासिक पत्रिका की संपादिका मधु पूर्णिमा किश्‍वर ने कहा देश स्वतंत्र होने के उपरांत अभी तक विविध सरकारों तथा यहां के समाज ने वामपंथी, इस्लामी गुट और इन्हें धन की आपूर्ति करनेवाली विदेशी संस्थाओं को चाहे जैसे कानून बनाने की खुली छूट दी है। इसलिए उनकी अनुमति के बिना कोई भी नया कानून नहीं बनेगा, इसकी उन्हें आदत हो गई है। हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने कहा कि किसान आंदोलन के समय जो हुआ उससे संबंधित वास्तविकता देखते हुए यह संकट की आहट न होकर यह संकट देश की राजधानी में भी गणतंत्र दिवस पर सभी सीमाएं पारकर अपने द्वार पर आ गया है। देश में चल रहे झूठे प्रचारतंत्र के संबंध में हिन्दू समाज को जागृत करने की आवश्यकता है। हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा सर्व प्रश्‍नों पर उत्तर है, यह ध्यान में रखना चाहिए। आगरा स्थित 'इंडिक एकेडमी' के समन्वयक विकास सारस्वत बोले 'वर्तमान में चल रहा किसान आंदोलन यह आंदोलन के नाम पर 'आंदोलन' हो रहा है। 26 जनवरी को इन्होंने किया हुआ यह आंदोलन 'विद्रोह' नहीं, अपितु 'राजद्रोह' था। जो समूह इस आंदोलन में जुडे हैं, उनका उपयोग अलग कारणों के लिए किया जा रहा है, यह दुर्भाग्य है।