वेटरनरी विवि में ई-पशुपालक चौपाल : हरे चारे का साईलेज बढ़ाता है दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन




बीकानेर, 27 जनवरी (सीके मीडिया/छोटीकाशी)। राजस्थान के बीकानेर में डेयरी फार्मिंग के लिए वरदान-साईलेज विषय पर वेटरनरी विश्वविद्यालय में ई-पशुपालक चौपाल का आयोजन बुधवार को किया गया। वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशक प्रो राजेश कुमार धूडिय़ा ने कहा कि पशुओं को सालभर हरा और पौष्टिक चारा कम लागत और कम मेहनत में उपलब्ध करवाने के लिए साइलेज अत्यंत उपयोगी है। इससे दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है और यह पशुपालकों के लिए लाभकारी और एक सरल विधि है। खन्ना (पंजाब) के एक्सीलैन्ट एन्टरप्राइजेज प्रा लिमिटेड के विशेषज्ञ डॉ हरिन्द्र सिंह ने साइलेज को बनाने और उसकी उपयोगिता के बारे में पशुपालकों को विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि साइलेज एक हरे चारे का अचार है जिसको लम्बे समय तक संरक्षण करने से चारे की पौष्टिकता और गुणवत्ता बनी रहती है। मक्का, ज्वार और बाजरे जैसी दानेदार प्रमुख फसलों के चारे का साईलेज बनाया जाता है। दूधिया अवस्था में मक्की का भुट्टा जमीन में खड्ढा खोदकर दबाने अथवा साइलेज बैग में रखकर उसे हवा पानी से दूर रहकर तैयार किया जा सकता है। 40 से 45 दिन बाद इसे उपयोग में लिया जा सकता है। पशु की दुग्ध क्षमता और भार वहन क्षमता के अनुसार साईलेज चारा खिलाया जाना चाहिए। तीन माह से छोटे पशुओं को साइलेज नहीं देना चाहिए। गड्ढे में 100 टन साईलेज के लिए 25 फुट लम्बा, 8 फुट चौड़ा 4 फुट गहरा गड्ढा जिसमें 2 फुट जमीन के ऊपर रखने के लिए बनाना जरूरी है। पराली, तूड़ी और रिजका का साईलेज विशेषज्ञों की देखरेख और सलाह से ही बनाया जा सकता है। साइलेज पशुपालकों के लिए समय और श्रम की बचत के साथ-साथ पशुओं के स्वास्थ्य, अच्छे पाचन और अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए अत्यंत उपयोगी है। डॉ हरेन्द्र सिंह ने बताया कि गत 5-7 वर्षों में इसका प्रचलन बढ़ा है और पंजाब प्रांत से इसका विपणन अन्य प्रांतों के लिए भी किया जाने लगा है। ई-चौपाल को वेटरनरी विश्वविद्यालय के वेबसाईट पेज पर राज्य के सैंकडों पशुपालकों ने सुना और देखा। अगली विशेषज्ञ वार्ता 10 फरवरी, 2021 को अपरान्ह 12 बजे से सुनी जा सकती है।