पितरों के मोक्ष के लिए करें मोक्षदा एकादशी का व्रत..मिलता है पितरों को मोक्ष : ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास






जयपुर {CK NEWS}। मोक्षदायिनी एकादशी मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मोक्षदा एकादशी को पितरों को मोक्ष दिलाने वाली एकादशी के रूप में जानते हैं। मान्यता है कि व्रती के साथ पितरों के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक एवं सुविख्यात ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि मोक्षदा एकादशी शुक्रवार 25 दिसंबर को है। यह इस साल की आखिरी एकादशी होगी। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को भी मोक्षदायिनी एकादशी का महत्व समझाया था। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह एकादशी बहुत ही पुण्य फलों वाली होती है। कहते हैं कि इस दिन सच्चे मन से अराधना करने वालों को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। ऐसे में इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है।

विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुंडली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि मोक्षदा एकादशी का तात्पर्य है मोह का नाश करने वाली। इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहा गया है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हर माह दो एकादशी व्रत पड़ते हैं। एक शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। मान्यता के अनुसार द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान दिया था। अत: इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है।


पूजा विधि..


 भविष्यवक्ता और कुंडली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर मंदिर की सफाई करें। इसके बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। अब भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं। भगवान को रोली, चंदन, अक्षत आदि अर्पित करें। फूलों से श्रृंगार करने के बाद भगवान को भोग लगाएं। मोक्षदा एकादशी के दिन सबसे पहले भगवान गणेश की आरती करें। इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारें। एकादशी के अगले दिन द्वादशी को पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन व दान-दक्षिणा देनी चाहिए। इसके बाद भोजन ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए।


मोक्षदा एकादशी का महत्व और गीता जयंती..


विश्व विख्यात भविष्यवक्ता और कुंडली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें कर्मों के बंधन से मुक्ति मिलती है। वहीं इस व्रत को करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अजुर्न को गीता का संदेश दिया था इसलिए इस उपलक्ष्य में मोक्षदा एकादशी पर गीता जयंती मनाई जाती है। श्रीमद् भागवत गीता एक महान ग्रंथ है। गीता ग्रंथ सिर्फ लाल कपड़े में बांधकर घर में रखने के लिए नहीं है बल्कि उसे पढ़कर उसके संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। भागवत गीता के चिंतन से अज्ञानता दूर होती है और मनुष्य का मन आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता है। इसके पठन-पाठन और श्रवण से जीवन को एक नई प्रेरणा मिलती है। वहीं इस दिन श्रीमद् भागवत गीता, भगवान श्रीकृष्ण और महर्षि वेद व्यास का विधिपूर्वक पूजन करके गीता जयंती उत्सव मनाया जाता है।


मिलता है पितरों को मोक्ष..

 

विश्व विख्यात भविष्यवक्ता और कुंडली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि इस व्रत की कथा, पूजन करने से यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। मोक्षदा एकादशी को लेकर ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर का पूजन करने, उपवास रखने व रात्रि में जागरण कर श्रीहरि का कीर्तन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत का फल पूर्वजों को भी प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्यों के लिए यह अत्यंत ही पुण्यकारी बताया गया है। यह एकादशी मुक्तिदायिनी तो है ही साथ ही इसे समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली भी माना जाता है।


गीता जीवन ग्रंथ भी है..


सोमेश्वर महादेव मंदिर मालवीय नगर-जयपुर के पंडित मदन मोहन शर्मा ने बताया कि गीता केवल एक धर्म ग्रंथ ही नहीं, बल्कि यह एक जीवन ग्रंथ भी है, जो हमें पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। शायद इसी कारण से हजारों साल बाद आज भी यह हमारे बीच प्रासंगिक है। मान्यता है कि द्वापर युग में त्रियोग के प्रवर्तक श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था, जो मोक्षदायक है। इसी कारण इस एकादशी का एक प्रचलित नाम मोक्षदा एकादशी भी है। यह दिन ‘गीता जयंती’ के रूप में भी प्रचलित है। धर्मज्ञों की राय में धार्मिक व आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रतिपादन ही गीता का मूल उद्देश्य है। कर्म और धर्म के महाकोष गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता त्रियोग, रजोगुण संपन्न ब्रह्मा से भक्ति योग, सतोगुण संपन्न विष्णु से कर्म योग और तमोगुण संपन्न शंकर से ज्ञान योग का ऐसा प्रकाश है, जिसकी आभा हर एक जीवात्मा को प्रकाशमान करती है। महाभारत अर्थात् ‘जय संहिता’ के 18 पर्व में भीष्म पर्व का अभिन्न अंग गीता है, जिसमें  त्रियोग का सुंदर समन्वय मिलता है। 


व्रत कथा..


सोमेश्वर महादेव मंदिर मालवीय नगर के पंडित मदन मोहन शर्मा ने बताया कि एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं और अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहे हैं। अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा। प्रात: राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न का भेद पूछा। तब ब्राह्मणों ने कहा कि हे राजन! इस संबंध में पर्वत नामक मुनि के आश्रम पर जाकर अपने पिता के उद्धार का उपाय पूछो। राजा ने ऐसा ही किया। जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी तो वे चिंतित हो गए। उन्होंने कहा कि हे राजन! पूर्वजन्मों के कर्मों की वजह से आपके पिता को नर्कवास प्राप्त हुआ है। अब तुम मोक्षदा एकादशी का व्रत करो और उसका फल अपने पिता को अर्पण करो तो उनकी मुक्ति हो सकती है। राजा ने मुनि के कथनानुसार ही मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई।


मोक्षदा एकादशी व्रत मुहूर्त..


एकादशी तिथि प्रारंभ- 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 17 मिनट से

एकादशी तिथि समाप्त- 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 54 मिनट तक