बीकानेर, 26 जुलाई (छोटीकाशी डॉट पेज)। राजस्थान के पूर्व वित्त मंत्री मानिक चन्द सुराना ने रविवार को राजस्थान के संवैधानिक संकट पर बेबाक वक्तव्य देते हुए कहा कि, राजस्थान ही नहीं देश में संविधान निर्माण के 70 सालों में महामहीम राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ही पहले राज्यपाल है जिन्होंने सत्र बुलाने के लिए विधिक राय लेने का कहकर कांग्रेस के सभी 88 विधायकों, 10 निर्दलीय विधायकों व अन्य पार्टियों बीटीपी, सीपीएम व राएलडी के चार विधायकों को राज्यपाल भवन में अनिश्चितकालीन धरना करने को मजबूर कर दिया है। सुराना ने कहा कि भाजपा सन् 1993 का इतिहास न भूले जब भाजपा के 95 विधायक थे और करीब 10-12 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन के पत्र दिये थे। मैं उस सारे घटनाक्रम का साक्षी हूँ, जबकि तत्कालीन कांग्रेस के राज्यपाल ने केन्द्रीय सरकार के प्रभाव में भैरोंसिंह शेखावत को तत्कालीन राज्यपाल बलीराम भगत द्वारा ना-नुकर करने पर राज्यपाल भवन पर धरना करना पड़ा और वह धरना राज्यपाल ने शेखावत को सरकार बनाने के निमन्त्रण दिये जाने के बाद ही समाप्त हुआ। राज्यपाल को ध्यान होना चाहिए कि कर्नाटक विधानसभा में हुआ विवाद भारत के उच्चतम न्यायालय तक गया था, उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार का बहुमत सिद्ध करने के लिए विधानसभा बुलाने के निर्देश दिये गये। ऐसे ही निर्देश मध्यप्रदेश के विवाद पर उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये। अत: इन संवैधानिक उदाहरणों को मध्यनजर रखते हुए राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि वे बहुमत राजस्थान मंत्रीमण्डल व विधायकगणों के निवेदन पर तत्काल सदन को आहूत कर राजस्थान की जनता के समक्ष उत्पन्न हुए विवाद में दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।