बीकानेर, 21 जुलाई (छोटीकाशी डॉट पेज)। केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी ने मंगलवार को कहा कि राजस्थान के रेगिस्तान में वैज्ञानिकों, कृषकों एवं उद्यमियों के संयुक्त प्रयास से बागवानी विकास की गति जोर पकड़ रही है। खजूर की बागवानी की ओर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों के किसानों की रूचि निरंतर बढ़ती जा रही है। चौधरी मंगलवार को केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान की ओर से दो दिवसीय खजूर पर ऑनलाइन वेबीनार में अपनी बात कह रहे थे। उन्होंने केन्द्र सरकार की विभिन्न कृषक कल्याणकारी योजनाओं के विषय में विस्तार से जानकारी दी तथा बताया की खजूर के कृषक उत्पादक संगठन को केन्द्र सरकार की तरफ से 18.00 लाख रूपये तक सहायता दी जा सकती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक, (बागवानी विज्ञान) डॉ. ए.के.सिंह ने किसानों को आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए अपनी बागवानी की फसलों से आय बढ़ाने का आह्वान किया कि तकनीकी के माध्यम से ही किसान अपनी आय दोगुनी-चौगुनी कर सकते हैं। भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर के निदेशक प्रो. पी.एल. सरोज ने अतिथियों का स्वागत करते हुए खजूर की भारत में ऐतिहासिक खेती के विकास पर विस्तार से जानकारी दी और बताया कि खेती के प्रोत्साहन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विगत में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को पश्चिम भारत के शुष्क क्षेत्रों में क्रियान्वित किया गया जिसके फलस्वरुप देश में लगभग 22 हजार हैक्टेयर विभिन्न प्रान्तों में खजूर की खेती की जा रही है। वेबीनार के आयोजक सचिव, डॉ. धुरेन्द्र सिंह ने खजूर नेटवर्क परियोजना के उद्देष्य स्वयं प्रगति के विषय में प्रतिभागियों को विस्तार से जानकारी दी। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.एस. सिंह ने खजूर की विभिन्न प्रजातियों एवं उनके द्वारा तैयार विभिन्न उत्पादों के बारे में वैज्ञानिक जानकारी दी। काजरी संस्थान, जोधपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के. कौल एवं आनंद कृषि विश्वविद्यालय, गुजारात के डॉ. जी.बी. पाटिल द्वारा खजूर की टिश्यू कल्चर तकनीकी एवं लोकल प्रजातियों की उत्पादन तकनीकियों पर विस्तार से वर्णन किया। वेबीनार में अतुल राजस्थान खजूर कंपनी के महाप्रबंधक अजीत सिंह बत्रा द्वारा कंपनी में उपलब्ध विभिन्न प्रजातियों के पौधे एवं पूर्व में किसानों को दिए गए पौधों की उत्पादन क्षमता पर जानकारी दी गयी। कार्यक्रम के अंत में संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. एम.के. बेरवाल ने अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।