एनआरसीसी का दक्षिण भारत की तरफ रुख, ऊंटनी के दूध के प्रति जागरुकता बढ़ाने और व्यावसायिक स्वरुप प्रदान करना





बीकानेर (सीके न्यूज, छोटीकाशी)। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र [एनआरसीसी] ने ऊंटनी के दूध के प्रति जागरुकता बढ़ाने एवं इसे एक व्यावसायिक स्वरुप प्रदान करने के लिए दक्षिण भारत की ओर रुख किया है। एनआरसीसी, अंकुशम प्रा.लि. पुणे के समन्वय से कोयम्बटूर में एक राष्ट्रीय सेमीनार भी आयोजित की गयी। एनआरसीसी के निदेशक डॉ. आर्तबंधु साहू ने बताया कि एनआरसीसी व अंकुशम इंजीनियरिंग प्रा.लि. समूह के मैनेजिंग डायरेक्टर मनीकन्दन पी. के मध्य एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर किए गए। अंकुशम प्रा.लि. द्वारा संघमित्रा के नाम से उष्‍ट्र दूध व दुग्‍ध उत्‍पादों का व्‍यवसाय प्रारम्‍भ किया है जो अंकुशम ग्रुप का एक हिस्‍सा बनेगा। इसके साथ ही कैमल मिल्‍क से संबंधित दक्षिण भारत में पहला कैमल डेयरी फार्म खुल गया है। कोयम्‍बटूर में आयोजित इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में इन दोनों संस्‍थाओं के अलावा गुजरात की सहजीवन संस्‍था, सादड़ी की लोकहित पशुपालन संस्‍था तथा पूणे के डॉ. डीवाई पाटिल मेडिकल कॉलेज की भी सहभागिता रही तथा करीब 165 वैज्ञानिकों, विषय-विशेषज्ञों, इंजीनियर्स, किसानों ने समीक्षात्‍मक प्रतिक्रिया सहित ऑनलाईन जुड़े। डॉ. साहू ने कहा कि ऊंटनी के दूध की वैज्ञानिक आधार पर औषधीय गुणधर्मों को देखते हुए एनआरसीसी द्वारा गत डेढ़ दशक से ज्‍यादा समय से इसके प्रति आमजन में जागरूकता बढ़ाने एवं इसे व्‍यावसायिक स्‍वरूप प्रदान करने हेतु देशभर में सतत पहल की जा रही है ताकि मानव स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हेतु एक 'औषधि भण्‍डार' के आधार पर दूध का अधिकाधिक प्रचलन बढ़ सके तथा ऊंटपालकों को दूध का सही बाजार भाव मिलने से उनके द्वारा पूरी तरह से इसे व्‍यवसाय के रूप में अपनाते हुए आय में आशातीत वृद्धि लाई जा सके। डॉ साहू ने जानकारी दी कि केन्‍द्र द्वारा उष्ट्र डेयरी के सफल संचालन से प्रदेशभर के ऊंटपालक प्रेरित हो रहे हैं। इसी क्रम में अब नए एमओयू के माध्‍यम से दक्षिण भारत में भी इसे बढ़ावा देने की पहल की गई है जिसमें ऊंट आधारित इको-टूरिज्‍म से जुड़ी अपार संभावनाओं की ओर प्रोत्‍साहित कर इस पशु की उपादेयता को नए आयामों में भी सिद्ध किया जा सके। अंकुशम इंजीनियरिंग ग्रुप के मनीकन्‍दन पी. मैनेजिंग डायरेक्‍टर ने कहा कि ऊंट प्रजाति के महत्‍व को ध्‍यान में रखते हुए इसके दूध एवं पर्यटन आदि पहलुओं को बेहतर स्‍वरूप में उजागर किया जाना समय की मांग है तथा इस हेतु एक नए प्लेटफार्म के रूप में एनआरसीसी जैसे विश्‍व प्रसिद्ध संस्‍थान के साथ कार्य करना निश्चित रूप से उत्‍साहजनक है तथा इससे उष्‍ट्र प्रजाति को लेकर नूतन मार्ग भी प्रशस्‍त होने में मदद मिल सकेगी। इस अवसर पर केन्‍द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल ने केन्‍द्र की ऊंट प्रजाति से जुड़ी वैज्ञानिक गतिविधियों एवं टूरिज्‍म को लेकर किए जा रहे नए आयामों में व्‍यावहारिक प्रयासों पर प्रकाश डाला। साथ ही उन्‍होंने कहा कि मादा ऊंट का जहां दूध व्‍यवसाय के रूप में प्रयोग किया जा सकता है वहीं नर ऊंट को पर्यटन उद्योग के क्षेत्र में प्रयुक्‍त किया जाना चाहिए। समय के साथ-साथ इसके प्रति जागरूकता बढऩे से पशुपालकों की आय में भी वृद्धि हो सकेगी।