बीकानेर । शहर में आज धींगा गवर पूजन का समापन हुआ,समापन पर सुहागिनें ने सिर धोकर नए कोरे कपड़े पहनकर धींगा गवर का पूजन कर व्रत खोला । रमक झमक के अध्यक्ष प्रहलाद ओझा 'भैरु' ने बताया कि चेत्र शुक्ला तृतीया को यह पूजन शुरू हुआ था, यह पूजन लगातार 15 दिन चलता है और आशोज कृष्णा तीज को उल्लास उमंग से सम्पन्न होता है,प्रतिदिन गीत गाये जाते है।तीज की पूर्व संध्या पर गवर की गोठ होती है। तीज को गवर को कुएं पर जाकर पानी पिलाया जाता है,फिर गवरजा ईशर की पूजा होती है पूजा में सुहाग सामग्री, पेचा, खोपरा, पताशा,फोगला,पान,मोटा भुजिया, मीठा चना,दही,माला,मिठाई,रोटा चूरमा,गेहूं, गवरजा को भेंट किया जाता है। रमक झमक के अध्यक्ष प्रहलाद ओझा 'भैरु' ने बताया कि लोकडाउन के चलते कई चीजें सम्भव नहीं थी इसलिये घर की महिलाओं घर की अंडर ग्राउंड कुंडी से जल निकाल कर अपने पल्लू से पानी पिलाने की रस्म अदा की। समूह की जगह गोठ अपने अपने घर में सिर्फ अपने पति बच्चों के साथ गोठ की। दही घर ही पर जमाया,पान की जगह सुपारी या इलायची चढ़ाई, और जिनके घर में पौधों में पुष्प थे उन्होंने माला की जगह पुप्ष चढ़ाया। जो चीज उपलब्ध नहीं हो पाई उसके स्थान पर अंत में तुलसी दल चढ़ाया, शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी ताजा हो या सूखा पुराना हो उसे पानी के छीटें देकर चढ़ाया जा सकता है । देवी देवता भाव व प्रार्थना पूर्वक चढ़ाए गए तुलसी दल से प्रसन्न हो जाते है । पूजन पश्चात पँथवाड़ी पूजन का परम्परा के अनुसार सड़क पर पानी से गवर का घाघरा बनाया जाता है,आज मुख्य सड़क की बजाय ये घाघरा, घर की चौकी या सीढ़ियों पर ही बनाया गया और लोकडाउन का पालन भी किया। व्रत खोलने से पूर्व अपने अपने घर मे ही महिलाओं ने हाथ मे आखे गेहूं लेकर धींगा गवर की कथा पढ़ी ।
धींगा गवर पूजन सम्पन्न, घर की कुंडी का पिलाया पानी